मंगलवार, 3 जुलाई 2007

आयें..पढ़ें एक नया इतिहास..

पिछले दिनों डा० भीमराव अम्बेदकर की पुस्तक "अछूत: वे कौन थे और वे कैसे अछूत बन गये" के सारांश के मेरे प्रयास पर नज़र गई होगी आप की.. कुछ ने नहीं भी देखा होगा.. हर समय व्यक्ति इस तरह की भारी सामग्री पढ़ने की मनःस्थिति में नहीं होता.. तो आप सब के लिए और उन के लिए भी जिन्होने इन कड़ियों को देखा.. और सब से बढ़कर अपने लिए मैं उन निष्कर्षों को रेखांकित करना चाहूँगा जो अम्बेदकर ने अपने इस शोध के उपरांत हासिल किए..



कबायली समाज और छितरे लोग
आदिम समाज घुमन्तु कबीलों में बँटा समाज था.. जो आपस में लड़ते रहते..कृषि क्रांति होने से कुछ लोग गाँवों मे बस गए.. किन्तु कुछ लोग घुमंतु बने रहे और हमले करते रहे.. हारे हुए और उजड़े हुए कबीलों के बिखरे हुए लोग.. दूसरे बसे हुए कबीलों के गाँवों की सीमाओं पर रहते.. इन्हे छितरे लोग (broken men) कहा गया.. इस तरह की परिघटना दुनिया में हर जगह हुई.. और बसे लोगों में और छितरे लोगों में एक समझौता सा हुआ.. जिसके तहत किसी हमले की हालत में छितरे लोग, बसे लोगों के सुरक्षाकवच का काम करेंगे.. बदलें में बसे हुए लोग उन्हे रहने को सीमा पर जगह और अपने मृत पशु देंगे.. जिनके मांस खाल हड्डी आदि का वे उपयोग कर सकेंगे..
दूसरी जगहों पर छितरे लोग धीरे धीरे मुख्यधारा का अंग हो गए पर भारत में ऐसा नहीं हुआ.. भारत में छितरे लोग अछूत बन गए.. कैसे?

आर्य और द्रविड़
अछूत कोई अलग से पैदा हुई हारी हुई नस्ल नहीं है.. प्राचीन भारत में अधिक से अधिक दो ही वर्ग थे.. आर्य और नाग.. आर्य कोई प्रजाति थी या नहीं इस पर शक है..हाँ यह एक संस्कृति थी..जिनके अन्दर भी दो संघर्षरत वर्ग थे.. ऋग्वेदी व अथर्ववेदी.. और नाग, जिन्हे अन्यत्र दास या दस्यु भी कहा गया है.. नाग भी एक संस्कृति थी.. इनकी भाषा द्रविड़ थी.. इन के वंशज आज भी पूरे भारत में हैं.. पर भाषा सिर्फ़ दक्षिण भारत में सिमट गई है.. पहले द्रविड़ भाषा पूरे भारत में बोली जाती थी.. कश्मीर और सिंध में भी.. जिसे पैशाची कहा गया है..
आर्यों और नागों मे अन्तर्सम्बन्ध थे और वैवाहिक सम्बन्ध भी थे..


वैदिक संस्कृति और गोमांस
प्राचीन वैदिक संस्कृति बलि की संस्कृति है.. नरमेध, अश्वमेध और गोमेध आदि यज्ञों में नर, अश्व, गो आदि की बलियां होती थीं.. ये बलियां ब्राह्मणों द्वारा दी जाती थीं और ये ब्राह्मण पुरोहित मिल कर सारा मांस आपस में बाँट लेते थे.. ब्राह्मण पहले भयंकर मांसाहारी थे.. और गोमांस उनका प्रिय खाद्य था..रोज़ रोज़ की इस बलि से समाज ब्राहमणों से आक्रांत था..

बुद्ध की क्रांति
५५० ईसा पूर्व में बुद्ध की धार्मिक क्रांति से सब कुछ बदल गया.. बुद्ध के मानवीय धर्म का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा.. बड़ी संख्या में राजाओं और आम जन ने ब्राह्मण धर्म को ठुकरा कर बुद्ध के सच्चे धर्म को अपना लिया.. ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा और रोज़गार खतरे में आ गया.. वे काफ़ी समय तक हाशिये पर चले गये.. जबकि बौद्ध धर्म का विस्तार पूरे भारत और भारत के बाहर पूरे एशिया में हो गया..

बौद्ध-ब्राह्मण संघर्ष में ब्राह्मणों का पलटवार
पर ब्राह्मण संघर्षशील रहे.. और बौद्ध धर्म से लड़ते रहे..विचार से और हथियार से भी..१८५ ईसा पूर्व में मौर्य शासक बृहद्रथ के ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र ने उसका सर काट लिया और खुद गद्दी पर आरुढ़ हुआ.. उसके बाद से देश में लगातार बौद्धो को हटाकर ब्राह्मण धर्म को पुनर्स्थापित किया जाने लगा.. ब्राह्मणों द्वारा किए जा रहे इस अभियान और तमाम दूसरे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नया साहित्य रचा गया.. जिसमें अग्रणी रहा मनुस्मृति..
मनु स्मृति ने ब्राह्मणवाद को मजबूत करने के तमाम कोशिशे की.. पुराने यज्ञ वाले धर्म को पुनर्स्थापित करने की कोशिश की.. समाज में धीरे धीरे बौद्धों को परिहास का पात्र बनाया गया.. और उनसे घृणा की गई.. भिक्षुक भिखारी हो गया.. बुद्ध बुद्धू बन गया..

हिन्दू धर्म में बदलाव
परन्तु समय बदल गया था.. और जनमामस में अहिंसा का भाव बैठ गया था जो कृषि आधारित समाज के लिये उपयोगी भी था..बौद्ध धर्म जनता के लिए ब्राह्मण धर्म से कहीं अधिक आकर्षक था.. तो ब्राह्मणों ने पैंतरा बदला और बौद्धो की नकल करना शुरु किया उनके जीवन दर्शन को अपनाया.. बौद्धो की तरह मन्दिर बनाये और और मूर्ति पूजा शुरु की.. वैदिक धर्म में मूर्ति पूजा का कोई स्थान न था.. और इस सब से भी बढ़कर ब्राह्मण, गोभक्षक से गोरक्षक बन गये..मगर क्यों?

शाकाहार-मांसाहार
बौद्ध पूरी तरह शाकाहारी नहीं थे... वे हिंसा के विरोधी थे मगर..मरे जानवर का और ऐसे जानवर का मांस खा लेते थे जिसे उनके लिये मारा न गया हो.. तो बौद्धो से भी दो कदम आगे निकलने के लिए ब्राह्मणों ने गोवध को सबसे बड़ा पाप घोषित कर दिया.. और गोमांस खाने वाले को अस्पृश्य..
सबसे पहले ब्राह्मणों ने गोमांस खाना छोड़ा.. कुछ ने तो मांसाहार भी छोड़ा.. फिर ब्राह्मणों की देखादेखी अब्राह्मणों ने भी गोमांस छोड़ा.. किसने नहीं छोड़ा?

अछूतों का जन्म
छितरे लोग जो गाँव के सीमाओं पर रहकर पहरुए और प्राचीन समझौते के तहत मृत जानवरों को ठिकाने लगाने का काम कर रहे थे.. और मृत जानवरों का मांस खाते चले आ रहे हैं.. वे चाह कर भी गोमांस खाना छोड़ नहीं सकते थे क्योंकि गाँव वालों के पास से वही जानवर प्राप्त होंगे जो वे पालते हैं यानी कि गो बैल आदि.. और इसके अलावा जीविका का कोई दूसरा साधन उनके पास नहीं था..
नई बदली हुई स्थिति में यह पाप कर्म था.. और इस महापाप को जानकर भी करते रहने के कारण छितरे लोग अस्पृश्य हो गये.. इस परिघटना की शुरुआत का काल अम्बेदकर ४०० ई. के आस पास का तय करते हैं..

कहाँ गए सब बौद्ध?
उक्त पुस्तक में अम्बेदकर इतने ही निष्कर्षों की चर्चा करते हैं पर सवाल और बहुत हैं.. जो अन्यत्र उठाये गये हैं.. इतना सब हो जाने के बाद भी बौद्ध पूरी तरह सत्ताहीन नहीं हो गए थे.. हर्षवर्धन बौद्धधर्म का संरक्षक था.. और न ही शंकराचार्य के बाद तक उनका वैचारिक रूप से अस्तित्व समाप्त हुआ था.. तो फिर आज हमारे देश में बौद्ध क्यों नहीं हैं..? आखिर कहाँ गए सब बौद्ध..? ये बड़ा प्रश्न है जिसका जवाब अम्बेदकर की किसी दूसरी किताब में तलाशना होगा..

तस्वीरें:
सबसे ऊपर, अम्बेदकर विचार मग्न
बीच में, द्रविड़ विचारक पेरियार के साथ अम्बेदकर
सबसे नीचे, १९५६ में बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अम्बेदकर

13 टिप्‍पणियां:

Sanjay Tiwari ने कहा…

अम्बेडकर ने वही समझा जो समझ बनाने में अंग्रेज कामयाब रहे. फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अम्बेडकर ईसाई बन जाते तो क्या होता?

अभय तिवारी ने कहा…

एक पक्के सवर्ण की तरह बोले आप संजीव जी..जैसे अम्बेदकर कोई स्वतंत्र व्यक्ति ना होकर कोई अंग्रेज़ों के माउथपीस हों.. या मिट्टी के माधो हों.. आप ने उनको तो नहीं ही पढ़ा है ये आप के टिप्पणी से साफ़ है.. मत पढि़ये.. पर इस तरह की टिप्पणी करने के पहले अपने धर्म शास्त्रों का अध्ययन कर लीजिये.. अपने धर्म की सच्चाई आप को स्वयं पता चल जाएगी..

अभय तिवारी ने कहा…

माफ़ करें संजय जी .. गलती से आप का नाम संजीव लिख गया..

अफ़लातून ने कहा…

बाबासाहब के विशाल अवदान से कई विषयों में शोध के विषय मिल सकते हैं।हमारे विश्विद्यालय 'संजय'-दृष्टि से मुक्त हों , तब \

VIMAL VERMA ने कहा…

"बौध धर्म हिन्दू धर्म का ही अंग है" इस पर भी कुछ लिखा गया है या नहीं? वैसे इस लेख को पढकर आपके पिछ्ले लेख पढने की इच्छा जाग गई है. अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद!!

note pad ने कहा…

प्रशन्सनीय प्रयास !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

Pracheen ( Ancient ) Bhrat ke Brahman varg Gau -Maans khate the ye Dr Ambedker ji ne apne shodh - granth mei likha hai.
Yehan America mei BEEF = Cow Meat , bahot badee taadaad mei khaya jata ha.
Mexico aur Ecuador, Chile, Peru, Brazil jaise Southern American Nations mei COW = Gau ke , her ang - ko khya jane ki pratha hai.
Jo BEEF, ya anya tarah ka Maans nahee khate unke liye , Vegetarians ke liye, yehi saree cheejon se --
Dhrina - utpann hotee hai --
Ye bhee ek Sach hai.
( Maaf kariyega, tippani Angrezi mei likh rahee hoon )
Just wanted to share these thoughts. Thanx --
Good effort on bringing this detailed article series.
Rgds,
-- Lavanya

अनामदास ने कहा…

पहले तो धन्यवाद, इस सार-संग्रह के लिए. वाकई एक ऐसा काम कर दिया है आपने जो नेट पर हमेशा जीवित रहेगा, एक काम और कर दें कि अंबेडकर, आंबेडकर, अम्बेडकर, अम्बेदकर, अंबेदकर जैसे शब्द कीवर्ड में डाल दें ताकि ढूँढने वालों को ये सारी फ़ाइलें मिल सकें जो आपने इतनी मेहनत से क्रिएट की हैं. आपने पहले इतनी मेहनत से टाइप करके सब उपलब्ध कराया और फिर मेरे से जैसे भोंदू छात्रों के लिए कुंजी भी बना दी. क्या बात है, यह बहुत ही पुण्य का काम है अभय भाई, किसी भी कथित साहित्यिक कलह से बढ़कर.

बौद्ध कहाँ गए का सवाल दिलचस्प है...इसकी एक वजह हिंदू संस्कृति की सर्वग्रासी या सर्वग्राही (दोनों में से एक आप अपनी मर्ज़ी से चुन सकते हैं)होना है. बुद्ध को दशावतार बनाकर हिंदुओं ने उनको भी बड़े कड़ाह में घोल दिया, ठीक वैसे ही जैसे सारे द्रविड़ देवी-देवताओं को इसका रूप या उसका रुप बना लिया. वैसे भी बौद्ध धर्म एक वैचारिक धर्म था, संतुलन का धर्म, आडंबर के ख़िलाफ़ था, मूर्तिपूजा का विरोधी था (हालाँकि भक्तों ने असंख्य मूर्तियाँ बना डालीं गौतम बुद्ध की), कोई कर्मकांड नहीं था, कुल मिलाकर ऐसा कुछ नहीं था जो उन्हें अलग पहचान दिला सके भारत भूमि पर. जापान, कोरिया, थाइलैंड जैसे देशों में जहाँ हिंदू धर्म का ज़ोर नहीं था वहाँ तो वे बौद्ध के रूप में जाने गए लेकिन भारत में उसी विशाल कड़ाही में उबल रहे घोल में घुल गए जिसमें कई और संप्रदाय. बौद्ध भिक्षुओं की अलग पहचान उनके चोगे से है लेकिन अलग से उनकी पहचान ऐसी नहीं है जो उन्हें बहुसंख्य हिंदुओं से अलग कर सके. बाक़ी राजनीतिक तौर पर हर वर्ष बौद्ध बनने वालों के, हिंदु से बौद्ध और फिर हिंदु होने के बारे में तो आप जानते ही हैं. बौद्धधर्म का राजप्रश्रय धीरे धीरे ख़त्म हो जाना भी एक वजह रही होगी, हिंदू धर्म का राज से संबंध तो है लेकिन वह उस तरह आश्रित नहीं रहा जैसे बौद्ध धर्म. गौतम बुद्ध के जाने के बाद वैसा दार्शनिक संत कोई नहीं था तो बड़ी को इतने वैचारिक धर्म को खींच सके. ये सब बिल्कुल अनपढ़ आदमी के अनुमान हैं, ज़ाहिर है बहुत खोजने-बीनने की ज़रूरत है.
अनामदास

बोधिसत्व ने कहा…

भाई अभय
जहाँ तक मेरी जानकारी है जो हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहीं लिखा है या तो बौद्ध मुसललमान हो गये या आज के जो दलित हैं वे बौद्ध हैं।
धारणा तो यह भी है कि पुष्यमित्र शुंग जैसे ब्राह्मण राजाओं ने एक बौद्ध का सिर लाकर देने पर दीनार ( सोने के सिक्के) देने की राजाज्ञा दी हुई थी । ऐसे में यह भी संभव है कि दीनीर के लालच में बौद्धों का वध किया गया हो।
भारतीय समाज और जातियों के ऊपर विचार करते हुए यह बात शायद धुर्ये महोदय ने भी की है।

Yunus Khan ने कहा…

अभी तक आपकी श्रृंखला के चौथे भाग पर ही था । और आपने ये संक्षिप्‍त विवरण पेश कर दिया । ये अच्‍छा सुझाव है कि सारे ‘की-वर्ड’ डाल दिये जायें । मैंने अपनी कुछ पोस्‍टों पर अंग्रेज़ी में भी की-वर्ड डाले हैं । और इससे जो लोग देवनागरी से नहीं खोजते उनके लिए आसानी हो जाती है । मेरा सुझाव है कि अंग्रेज़ी में की-वर्ड ना डालें हो तो अवश्‍य डालें । ताकि आपकी मेहनत दूर तक पहुंचे ।

सवाल महत्‍त्‍वपूर्ण है कि बौद्ध कहां गये । इस बारे में खोज की जाएगी । अगर आपको अंबेडकर की ‘रिडल्‍स ऑफ हिंदूइज्‍म’ मिले तो बताईयेगा ।

Farid Khan ने कहा…

बोधि जी की बात तर्क-संगत लगती है....एक तो बौध्दों का सिर काट कर लाने के आदेश से कुछ लोगों से डर से बौध्द धर्म छोड़ दिया होगा और मध्य-काल में कुछ लोग मुस्लमान हो गए होंगे...

निरंतर धर्म परिवर्तन या नए धर्म को अपनाने की प्रवत्ति से एक बात तो स्पष्ट है कि लोगों की एक बडी़ तादाद ऐसी है जो हमेशा से खु़द को उंची जाति या वर्ग के बराबर देखना चाहतें हैं....
आपके द्वारा प्रस्तुत अम्बेदकर के सारांश से ये बात समझ में आती है.

एक बार फिर से इस बहुमूल्य पोस्ट के लिए धन्यवाद.

ढाईआखर ने कहा…

सवाल यह भी है कि बौद्ध भारत के बजाय अन्य एशियाई मुल्कों चीन, थाइलैण्ड, बर्मा, जापान, वियतनाम, तिब्बत, कोरिया में कैसे फैल गये और खूब फले फूले? वहां के बौद्ध्‍ विहारों को देखें, जो सैकडों साल पुराने हैं। हमें अपने शहर के कितने बौद्ध विहारों के बारे में जानकारी है? हमें चर्च मिल जायेंगे, पर विहार? अगर आप बोध गया, नालंदा, राजगीर, वैशाली, सारनाथ जायें तो पायेंगे कि ज्यादातर विकास और विहार का काम ऊपर गिनाये गये देशों ने किया है। ऐसा क्यूं। जब्बार पटेल ने अम्बेडकर पर एक फिल्म बनायी है, उस फिल्म में बौद्घ्‍ धर्म अपनाने के फैसले का भी चित्रण है। आज यह कहना, राजनीतिक रूप से आसान लगता है कि बौद्ध्‍, हिन्दू हैं। ये काम सिखों के साथ भी होता है। पर ये सब वर्णाश्रम के खिलाफ, दलितों वंचितों की आवाज के रूप में उभरे थे। इसीलिए आप आज भी देखें, कि बहुतायत बौद्ध्‍ कौन हैं। सवर्ण या दलित। अभय जी एक मजबूत संदर्भ बनाने के लिए आप वाकई बधाई के पात्र हैं। मैंने अपन ढेर सारे दोस्तों को, जो ब्लाग की दुनिया के दायरे में नहीं हैं, आपके पोस्ट की लिंक भेजी और उन सबने इसकी सराहना की है। इनमें कई दोस्त जो दलितों के साथ काम करते हैं, उनके लिए भी यह पढ्ना अच्छा अनुभव रहा। 'निर्मल आनन्द' अब कइयों की सन्दर्भ सूची में है।

बेनामी ने कहा…

ehh.. love this style )

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